नभ है अटा मेघों से
हैं काली घटाएँ घनघोर
मेघ गर्जन कर रहे
हैं बाण सरीखे बूँद चहुँ ओर
उजियारा तो यूं सिमट गया
मानो कागज अग्नि को भेंट हुआ
रह गया अवशेष श्यामली
स्वयं अस्तित्वहीन हुआ।
बहते जल की चादर धरा पर
श्यामवर्णित हो गयी
तिस को भेदती हर बूँद भी
बुलबुले में बदल गयी।
बुलबुले की चादर मनभावन
श्याम जल को ढकने लगी
बना आवरण झूठ का
की सच्चाई अब छुपने लगी
राही निहारे राह को
कि चल पड़े मंज़िल को
चले भी तो चले कहाँ
लागे है वह तो भूला है मंज़िल को।
देखता रहे आवरण को
इक ओर चाह यह है
या पकड़े राह लक्ष्य की
पर भ्रमित राही -मन है।
भ्रमित मन एवं परिस्थितियां
करती किंकर्त्तव्यमूढ़ राही को
होता अनुभव जड़ता का
की टाले है राही समय को।
विकल्प अब भी हैं खुले पड़े
कि जोहता है बाट समय का
हट जाये आवरण झूठ का
हो उजियारा सूर्य का।
या करे उजियारा राह को
अपने आत्म-प्रकाश से
और चल पड़े मंज़िल को
आत्म-बल के जोर से।
माना अँधियारा है क्षणिक अब
पर चलना ही जीवन है।
-पुरू
हैं काली घटाएँ घनघोर
मेघ गर्जन कर रहे
हैं बाण सरीखे बूँद चहुँ ओर
उजियारा तो यूं सिमट गया
मानो कागज अग्नि को भेंट हुआ
रह गया अवशेष श्यामली
स्वयं अस्तित्वहीन हुआ।
बहते जल की चादर धरा पर
श्यामवर्णित हो गयी
तिस को भेदती हर बूँद भी
बुलबुले में बदल गयी।
बुलबुले की चादर मनभावन
श्याम जल को ढकने लगी
बना आवरण झूठ का
की सच्चाई अब छुपने लगी
राही निहारे राह को
कि चल पड़े मंज़िल को
चले भी तो चले कहाँ
लागे है वह तो भूला है मंज़िल को।
देखता रहे आवरण को
इक ओर चाह यह है
या पकड़े राह लक्ष्य की
पर भ्रमित राही -मन है।
भ्रमित मन एवं परिस्थितियां
करती किंकर्त्तव्यमूढ़ राही को
होता अनुभव जड़ता का
की टाले है राही समय को।
विकल्प अब भी हैं खुले पड़े
कि जोहता है बाट समय का
हट जाये आवरण झूठ का
हो उजियारा सूर्य का।
या करे उजियारा राह को
अपने आत्म-प्रकाश से
और चल पड़े मंज़िल को
आत्म-बल के जोर से।
माना अँधियारा है क्षणिक अब
पर चलना ही जीवन है।
-पुरू